वास्तु अर्थात निवास स्थान, दश दिशायें होती हैं उन सभी दिशाओं का अपना अपना प्रभाव होता है | आम व्यक्तियों के लिए वास्तु के अनुकूल भले ही भवन निर्माण न हो सके किन्तु एक कोशिश अवश्य हो सकती है जिस प्रकार से ज्योतिष शास्त्र में भाग्य का परिवर्तन भले ही न हो सके किन्तु कर्मकांड के द्वारा रक्षा अवश्य हो सकती है |
अस्तु — ब्रह्मस्थल — अर्थात — भवन का “आंगन”—के देवता स्वयं ब्रह्माजी हैं तथा तत्व आकाश है | इस स्थान पर अर्थात “ब्रह्मस्थल ” पर आँगन अवश्य होना चाहिए साथ ही ऊपर से खुला जाल होना भी चाहिए जिससे आँगन में धुप -हवा का आना उत्तम रहता है | भवन का साफ सुथरा निर्माण एवं भार रहित होना निवासियों को विशाल हृदय के साथ -साथ विशाल बुद्धि मिलती है |
जिस प्रकार, किसी मनुष्य की जन्मकुंडली (जो व्यक्ति की नींव है) के आधार पर उसके बारे में सब कुछ बताया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार उसके मकान की संरचना व आंतरिक व्यवस्था (जो वास्तु के अंतर्गत ही आता है) को देखकर उसमें रहने वाले संपूर्ण परिवार के विषय में आंकलन कर सकते हैं। असल में वास्तु शास्त्र, प्रकृति के साथ-सामंजस्य बैठाकर उसमें व्याप्त ऊर्जा से लाभ उठाने की एक कला है।
निवास और कार्यालय का अकार वर्गाकार एवं -21 %1 अनुपात तक आयताकार शुभ होता है | प्रवेशद्वार शुभ जगह होना चाहिए | निर्माण एवं गृहप्रवेश शुभ मुहूर्त में होना अति आवश्यकहोता है |भवन की उत्तर दिशा एवं पूर्व दिशा में सड़क और खुला होने से शुभ रहता है| छत पर कबाड़ नहीं होना चाहिए | बंद घड़ियाँ ,बेकार मशीन भी घर में नहीं रखने से वास्तु देवता प्रसन्न रहते है ,घर में रहने वाले सभी लोग प्रसन्न रहते हैं|
जीवन में जितनी जरुरत ज्योतिष की होती है शायद अगर माने तो वास्तु भी बहुत ही जरुरत की चीज है -जिसे हम परखकर देख सकते हैं हम अपने संस्कार और संस्कृति जीवित रखने के लिए सदियों से वास्तु का भी अनुसरण करते आये हैं जभी तो दूर से ही तुलसी ,ॐ ,स्वस्ति की अलौकिक छवि भवन के द्वार पर पहले ही दिखाई देती है यही तो वास्तु शास्त्र की वास्तविकता है |
भवन निर्माण कर रहे हों या फिर वास्तु से सम्बंधित कोई समाधान चाहते हैं तो हमें अवश्य लिखें, और ज्योतिष एवं वास्तु शाश्त्र के अनुसार अपनी सस्याओं का निराकरण प्राप्त करें|
Note: अपने घर का नक्शा या फिर घर के विभिन्न हिस्सों कि Images अवश्य भेजें|